वैवाहिक जीवन के प्रतीक
भगवान शिव और मां पार्वती सुखी वैवाहिक जीवन के प्रतीक हैं। उनके आशीर्वाद से हर किसी का दांपत्य जीवन खुशियों से महक उठता है। जिस स्थान पर मां पार्वती और भगवान शिव परिणय सूत्र में बंधे थे वह उत्तराखंड में स्थित है। उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध त्रियुगी नारायण मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह का साक्षी है। आज भी इस मंदिर में इन दोनों के विवाह की निशानियां यहां मौजूद हैं। इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। आज हम आपको इसी प्रसिद्ध मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यताओं के बारे में बताने जा रहें हैं।
भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह का साक्षी रहे इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां शादी करने वाले जोड़े की जिंदगी संवर जाती है। हाल ही में टीवी एक्ट्रेस कविता कौशिक ने भी इसी मंदिर में सात फेरे लिए थे। आम आदमी से लेकर सितारों के बीच भी इस मंदिर की मान्यता का बहुत महत्व है। बड़ी तादाद में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। कहते हैं कि जिस भी दंपत्ति ने इस मंदिर के दर्शन्ा किए उनका वैवाहिक जीवन खुशियों से भर गया है।
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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का है किंतु इस स्थान को मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह स्थल माना जाता है। शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने मां पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी और विवाह में भाई द्वारा निभाई जाने वाली सभी रीतियों का पालन किया था। रुद्रप्रयाग में एक कुंड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि विवाह से पूर्व विवाह संस्कार में हिस्सा लेने के लिए भगवान विष्णु ने इसी कुंड में स्नान किया था।
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शिव-पार्वती के विवाह में ब्रह्मजी पुराहित बने थे। यहीं पर एक कुंड भी है जिसमें विवाह में सम्मिलित होने से पहले ब्रह्मा जी ने स्नान किया था। इस कुंड को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। इस तरह भगवान शिव के विवाह में तीनों महाशक्तियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश शामिल हुए थे।
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त्रियुगी नारायण मंदिर में एक अखंड धुनी भी जलती दिखाई देती है। इस अग्नि के बारे में मान्यता है कि इसी के चारों ओर भगवान शिव और मां पार्वती ने सात फेरे लिए थे। आज भी इस कुंड में अग्नि को जीवित रखा गया है।
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