राहु काल दक्षिण भारत में अत्यधिक प्रचलित हैं। यधपि अब राहु काल को भारत के पत्येक स्थान में प्रयोग किया जाता हैं। राहु-(अशुभ या बुरा) काल- समय, जैसे की नाम से ही स्पष्ट हैं कि राहु काल का अर्थ बुरे समय से जुडा हुआ हैं। इस समय किसी भी शुभ कार्य को नही करना चाहिये। राहुकाल को राहुकालम भी कहते हैं। राहुकाल कि अवधी 90 मिनट की होती हैं।
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राहुकाल के विषय में मान्यता हैं कि इस समय प्रारम्भ किये गये कार्यो में सफलता के लिये अत्यधिक प्रयास करने पडते हैं, कार्यों में बेवजह की दिक्कत आती हैं, या कार्य अधूरे ही रह जाते हैं। कुछ लोगों का मानना हैं कि राहुकाल के समय में किये गये कार्य विपरीत व अनिष्ट प्रद फल प्रदान करते हैं। राहु काल में किसी यात्रा का प्रारम्भ करना निषेध हैं।
राहु काल दिनमान के आठवें भाग का नाम हैं। राहुकाल का समय किसी स्थान के सूर्योदय व वार पर निर्भर करता हैं। सरलता के लिये सूर्योदय को यदि 6 बजे का माना जाये तो प्रत्येक वार के लिये राहुकाल इस तरह होगा-
- रविवार- 4:30 बजे से 6:00 बजे के मध्य तक।
- सोमवार- 07:30 बजे से 09:00 बजे के मध्य तक।
- मंगलवार- 03:00 बजे से 4:30 बजे के मध्य तक।
- बुधवार- 12:00 बजे से 01:30 बजे के मध्य तक।
- गुरुवार- 01:30 बजे से 03:00 बजे के मध्य तक।
- शुक्रवार- 10:30 बजे से 12:00 बजे के मध्य तक।
- शनिवार- 9:00 बजे से 10:30 बजे के मध्य तक।
राहुकाल का विशेष विचार रविवार, मंगलवार तथा शनिवार को आवश्यक माना गया हैं। बाकी दिनों में राहुकाल का प्रभाव विशेष नही होता। राहुकाल के दौरान अग्नि, यात्रा, किसी वस्तु का क्रय विक्रय, लिखा पढी व बहीखातों का काम नही करना चाहिये। राहुकाल विचार दिन में ही किया जाता हैं। कुछ लोग रात्री में भी राहुकाल मानते हैं, लेकिन ये उचित नही हैं।
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