पित्रों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध के दिनों का अत्यधिक महत्व है। श्राद्ध में कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती है इसलिए आपको श्राद्ध के दिनों में अपने पूर्वजों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए।
अपने पितृगण का तिथि और विधि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति की आयु को बढ़ाता है। अगर आपके पितृ आपसे प्रसन्न होंगें तो उनके आशीर्वाद से आपको आयु, धन, विद्या और स्वर्ग के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
5 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हुई और 7 सितंबर को द्वितीया श्राद्ध है। आइए जानते हैं द्वितीया श्राद्ध के बारे में।
कैसे करें द्वितीया पितृ पक्ष
द्वितीया श्राद्ध के दिन अपने घर पर दो ब्राहृमणों को बुलाकर उनका सत्कार करें। अपने मित्रों के निमित्त काली मिर्च युक्त लौकी की खीर, हरी सब्जी, पूड़ी, बादाम का हल्वा और तुलसी पऋ रखकर भागवत गीता के पंचम अध्याय का पाठ करें।
पूजन में तिल के तेल का दीपक जलाएं और मिश्री का भोग लगाएं। पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, हार और कांस्य के बर्तन भेंट करें। अब उन्हें ईलायची और लौंग खिलाकर दक्षिणा दें। चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें।
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द्वितीया पितृ पक्ष के नियम
द्वितीया श्राद्ध को श्राद्ध कर्म के बाद कम से कम दो ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करवाएं। अगर एक ही ब्राहम्ण है तो उनके साथ दूसरे ब्राह्मण के रूप में दामाद, नाती या भांजे को भोजन करवाएं।
– भोजन के पश्चात् ब्राहृमण को वस्त्र और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर विदा करें और उनसे आशीर्वाद लें।
– श्राद्ध के संपन्न होने के बाद कौवे, गाय और कुत्ते या किसी भिखारी को श्राद्ध का भोजन खिलाएं।
– अगर द्वितीया श्राद्ध को आपसे कोई अशुद्ध कम हो जाए तो पितृ पक्ष में ब्राहृमण को बुलाकर दूब, तिल, कुशा, तुलसीदल, फल, मेवा, दाल-भात, पूरी और पकवान सहित अपने दिवंगत पितरों का नाम लेकर श्राद्ध करें।
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