रज्जु योग
– सभी ग्रह चर राशि में हो (इस योग को रज्जु योग कहते हैं) तथा अष्टमेष व द्वादशेष का केंद्र प्रभाव विदेश में यात्रा करवाता हैं।
राहु या केतु
– चतुर्थ स्थान में राहु या केतु हो तथा लग्नेश या कर्मेश 3,8,9,12 स्थान में हो तो जातक रोजगार हेतु विदेश यात्रा करता हैं। यह जातक 24 वर्ष की उम्र में विदेश गया तथा वहां अपना कारोबार स्थापित किया। देखे धन स्थान पर 3,8,10,12 के मालिक सन्युक्त होकर स्थित हैं।
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राशि परिवर्तन
– द्वादशेष व चतुर्थेश का राशि परिवर्तन हो या एक दूसरे के स्थान पर प्रभाव हो तथा एक या दो वक्री ग्रह इन पर प्रभाव डालें तो जातक अलग-अलग देशों में नौकरी करता है।
सर्वाष्टक वर्ग
– यदि सर्वाष्टक वर्ग में बारहवें स्थान में सर्वाधिक बिदु हो तथा लग्न में राहु व अष्टम भाव का मालिक हो तो जातक विदेश में अत्यधिक लाभ प्राप्त करता हैं।
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कई देशों में कारोबार
– चतुर्थ स्थान पर बली शनि व गुरु चर राशि में वक्री होकर बैठे हो तो व्यक्ति कई देशों में कारोबार करता हैं।
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विदेश में नौकरी
– सूर्य राहु का योग 1,5,9,10 स्थान में हो तो जातक विदेश में नौकरी करता है।
– धनेश व लाभेष बली होकर व्यय या अष्टम स्थान पर स्थित हो तो व्यक्ति को विदेशी स्त्रोत से धन लाभ होता हैं।
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