ये मकर संक्रांति होगी सबसे अलग नहीं मिलेगा ऐसा मौका दोबारा

मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत वर्ष में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहु और बिहार में खिचडी के नाम से प्रसिद्ध यह त्योहार अलग अलग तरीके से बडी धूमधाम से मनाया जाता है। हरियाणा व पंजाब में एक दिन पूर्व ही लोहडी के रूप में मकर संक्रांति को मनाया जाता है। इस दिन भारत के अनेक स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है। माघ मेले की शुरुआत इसी दिन से होती है।

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ये मकर संक्रांति है स्पेशल- 

मकर संक्रांति अधिकतर 14 जनवरी को ही मनाई जाती है जबकी पिछले दो सालों से यह 15 तारीख को मनाई जा रही है और  इस वर्ष भी सूर्य 15 तारीख को मकर राशि में संचार करेगा। ऐसा इतिहास में बहुत ही कम देखने को मिलता है की  मकर संक्रांति लगातार तीसरी बार 15 तारिख को हो। इस कारण यह संक्रांति अपना अलग ही महत्व रखती है। इस दिन किया गया दान व शुभ कार्य कई गुणा प्रभाव रखने वाला होगा। संक्रांति  का पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य होगा।

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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व-

पुराणों मे इस दिन को अलग अलग तरीके से उल्लेखित किया गया है। कहा जाता है इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर में स्वयं जाते है। आज ही के दिन गंगा जी राजा भगीरथ की तपस्या के प्रभाव से धरती पर अवतरित हुई थी। श्री कृष्ण ने गीता में कहा था जो व्यक्ति उत्तरायण में अपने शरीर का त्याग करता है उसे पुनर्जन्म प्राप्त नही होता ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त करते है। भीष्म पितामह ने इसी दिन को प्राण त्यागने के लिये चुना था।

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सूर्य संक्रांति में होता है देवताओं का जागरण

मकर संक्रांति का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व है। सूर्य के मकर राशि में संचार करने पर इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तो दक्षिणायन देवताओं की रात्री होती है। यह समय दान के लिये विशेष महत्व रखता है। इस समय पवित्र नदियों में किया गया स्नान सभी पापों से मुक्ति दिलवाने वाला होता है।
सूर्य जब उत्तरायण का होता है उस समय किये गये समस्त शुभ कार्य विशेष लाभ देने वाले माने जाते है। इसी कारण जनवरी से लेकर जुन के मध्य तक जब सूर्य उत्तरायण होता है उस समय शुभ कार्यो के लिये मुहुर्त अधिक होते है।

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