पुराणों में उल्लेखित यह पवित्र वृक्ष हमेशा से हरा भरा और कभी न नष्ट होने वाला हैं जिसे अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की इसकी प्राचीनता के विषय में कोई नही जानता। अक्षयवट को मुगल शासकों के द्वारा कई बार काटा गया लेकिन यह पुन: जीवित हो उठा। औरंगजेब ने इसे जलाने का प्रयास किया था, परन्तु यह वटवृक्ष अपनी ही राख में पुन: पनप कर हरा भरा हो गया।
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राम ने भी किये थे दर्शन…
गंगा व जमुना के पावन तट पर स्थित अक्षय वृक्ष का वर्णन सर्वप्रथम वाल्मिकी रचित रामायण में आता हैं। भारद्वाज ऋषि राम और लक्ष्मण से कहते हैं तुम दोनों भाई गंगा यमुना के संगम में जाना वहां अनेक वृक्षों के बीच में एक विशाल बरगद का वृक्ष होगा। वहां अनेक सिद्ध पुरुष निवास करते हैं।चीनी यात्री ह्वेन सांग 700ईo के लगभग भारत आया था, उसने इस वृक्ष के बारे में लिखा प्रयाग में एक मंदिर हैं जो अत्यधिक सुंदर और भव्य है। इसके आंगन में एक विशाल वृक्ष है जिसकी शाखायें एवं पत्तिया दूर-दूर तक फैली हुई हैं।
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आदमखोर वृक्ष…
विदेशियों ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथों में इस वृक्ष का वर्णन अपने लेखों में किया हैं। गंगा-यमुना के पावन तट पर शरीर त्यागनें से मोक्ष प्राप्त होता है इस भावना से प्रेरित होकर अनेक लोग इस वृक्ष पर चढके नदी में छलांग लगाने लगे। एक समय यह प्रथा सी बन गयी थी, जिस कारण इस वृक्ष को अन्य धर्म के लोग आदम खोर वृक्ष के नाम से पुकारने लगें।
महादेव करते हैं इसकी रक्षा…
इस अदभुत वृक्ष का अत्यधिक महत्व है। पुराणों में कहा गया है कि इसकी रक्षा स्वयं महादेव शंकर करते हैं। पदम पुराण में कहा गया हैं की यह वृक्ष तीर्थराज प्रयाग का छत्र है और सृष्टी के आरम्भ से लेकर अंत तक रहेगा।
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