शिव को एक तरफ जहां उनके भोलेपन के कारण भोलेनाथ के नाम से जाना जाता हैं वहीं शिव का महारुद्र रूप सभी देवी देवताओं और राक्षसों के हृदय को कम्पित कर देता हैं। उनका रुद्र रूप महा प्रलय कारी होता हैं। ब्रह्मा को जन्म देने वाला, विष्णु को पालन करने वाला और महादेव को संहारक के रूप में जाना जाता हैं। शिव एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्होने राक्षस एवं देव को उनकी दुष्टता के कारण नाश किया हैं। शिव द्वारा विभिन्न देवताओं का दमन….
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1- प्रजापति दक्ष का नाश– शिव पुराण के अनुसार सती द्वारा यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुती देने से क्रोधित महादेव के क्रोध से उत्पन्न हुआ वीरभद्र दक्ष के यज्ञ को नष्ट करता हुआ जब दक्ष के समक्ष खडा हुआ तो तीनों लोकों में किसी में भी इतना साहस न था की वे दक्ष की रक्षा कर सके। भगवान शिव के उस महारुद्र स्वरूप ने एक ही झटके में दक्ष का मस्तिष्क उसी के हवन कुंड में काट कर अर्पित कर दिया।
2- कामदेव का भस्म होना- माता सती के शरीर त्यागने के पश्चात महादेव कई वर्षो तक समाधी में लीन रहे। कुछ वर्षो के उपरांत तारकासुर नामका एक राक्षस उत्पन्न हुआ, वह अमर के समान था, उसे वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु शिव के पुत्र के हाथों ही होगी। तारकासुर जानता था की शिव को जगाने का दुस्साहस कोई नही कर सकता। उसने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, उसके आतंक से सम्पूर्ण जगत में त्राही-त्राही होने लगी। भगवान शिव की तपस्या भंग करने का कार्य देवताओं ने कामदेव को सौपा, कामदेव जानते थे की शिव की तपस्या भंग होने के उपरांत उनका नाश होना तय है, लेकिन जगत का कल्याण जानकर उन्होने शिव की तपस्या अपने पांच कामरूपी बाणों से भंग कर दी। भगवान शिव अपनी तपस्या भंग होने के कारण इतने क्रोधित हुये की उनके तीसरे नैत्र से निकली प्रचंड अग्नि कामदेव को तत्क्षण भस्म कर गई। बाद में शिव ने उनकी पत्नि को आश्वसान दिया की ये कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेकर पुन: अपने शरीर को प्राप्त करेंगे।
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3- भगवान गणेश का मस्तिष्क छेदन- पार्वती माता के मानसिक पुत्र ने जब अपनी माता के आदेश पर पहरा देकर किसी को भी अंदर न आने की अनुमति का पालन करते हुये जब शिव को रोका तो शिव अत्यधिक क्रोधी हुये तथा बालक को कई बार समझाने पर भी जब गणेश ने उन्हे अंदर प्रवेश नही करने दिया तब शिव को विवश होकर बालक से युद्ध करना पडा, इस युद्ध में भगवान शिव ने बालक का मस्तिष्क छिन्न कर दिया। बाद में पार्वती के अत्यधिक क्रोधित स्वरूप को शांत करने पर बालक को पुन: जीवीत किया गया।
4- ब्रह्मा जी का अहंकार और भैरव रूप में उनकी गर्दन का खंडन- पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। उन्होने शिव की निंदा करने वाले ब्रह्मा के पांचवें मुख को अपने नख से छेदन कर दिया था। कथा प्रसंग के अनुसार ब्रह्मा और नरायण में इस बात को लेकर विवाद चल रहा था की सर्वश्रेष्ट कौन है। वेदों ने जब शिव का नाम लेकर उन्हे सर्वश्रेष्ट माना तब ब्रह्मा ने अहंकार वश शिव का अपमान करना शुरु कर दिया। तब भैरव रूप में शिव ने ब्रह्मा को दंड दिया था।
शिव के रुद्र रूप हैं, काल भैरव ….
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