पंचम स्थान पर ग्रहों की स्थिति संतान संख्या को निर्धारित करती है। जितना अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव संतान कारकों पर होगा उतना ही अधिक संतान सुख प्राप्त होगा। हिंदू धर्म में विवाह की सफलता संतान प्राप्ती पर ही पूरी मानी जाती हैं। पंचम स्थान पर विभिन्न ग्रहों के विभिन्न फल संतान सुख अलग-अलग रूप से देते हैं।
हमेशा शुभ फल देता है, जन्म कुंडली का यह योग….
1- पंचम स्थान पर सूर्य या केतु के स्थित होने पर संतान क्षेत्र में अनेक बाधायें होती हैं। इन ग्रहों का प्रभाव गर्भ ठहरने नही देता, अथवा संतान समय में ऑपरेशन आदि की स्थिति बना देना, संतान को कष्ट देना आदि होता है। यदि साथ में शुभ ग्रहों का प्रभाव हो या पंचमेश उच्च का होकर केंद्र या भाग्य स्थान पर स्थित हो तो संतान होती है। जातक एक ही संतान का सुख भोग पाता है।
2- पंचम स्थान पर शुक्र्ल पक्ष का चंद्र स्थित हो तो पुत्र सुख प्राप्त होता है। यदि कृष्ण पक्ष का चंद्रमा बली होकर स्थित हो तो कन्या प्राप्त होती है। और यदि चंद्रमा बल हीन होकर स्थित हो तो गर्भ धारण नही हो पाता। चंद्रमा का शुभ प्रभाव तीन संतान देता है।
ग्रहों की ये स्थिति हो तो होती है एक से अधिक शादी…
3- मंगल, शनि या राहु में से कोई भी ग्रह पंचम स्थान पर स्थित हो तब सन्तान प्राप्ती में बाधायें अवश्य आती हैं, फिर भी संतान सुख मिलता है, लेकिन यदि इन में से दो ग्रह संयुक्त रूप से स्थित हो तो संतान नही हो पाती। इन का प्रभाव दो संतान होने की और इशारा करता है। मंगल दो पुत्रों को शनि दो कन्या को तथा राहु एक पुत्र व एक कन्या को प्रदान करता है।
4- पंचम स्थान पर शुक्र या गुरु स्थित हो तब उत्तम संतान सुख प्राप्त होता है। संतान की कमी नही होती कम से कम दो संतान अवश्य होती है तथा अधिकतम पांच संतान होती है।
5- बुध यदि बलहीन या नीच हो तो गर्भ धारण नही हो पाता। बली होने पर पुत्र व पुत्री दोनों प्रदान करता है। दो संतान होती है।
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Meri kundli me putr Sukh h ya nhi