जीवन का सबसे बडा दुख पराधीन होकर जीवन यापन करने में हैं। कर्ज व्यक्ति को गुलाम बना देता है। दुसरों के अधीन व्यक्ति के जीवन में मौलिकता लगभग शूण्य हो जाती हैं शास्त्रकारों ने कहा हैं ‘ पराधीन सपनेहुं सुख नाही’। कर्ज का बाहरी कारण कुछ भी हो सकता है। लेकिन ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति होती हैं जिसके कारण व्यक्ति कर्ज जैसे भयानक दलदल में फंस जाता है। इस लेख के द्वारा मैं आपकों उन विशेष स्थितियों के बारे में जानकारी दूंगा जिनके कारण कोई जातक कर्ज दार बनता है-
पांच कारण जो नहीं आने देते हैं धन…
1- जन्म कुंडली के छठें स्थान में यदि लग्न का स्वामी या दशम भाव का स्वामी स्थित हो तो यह कर्जदार होने की स्थिति दर्शाता हैं ऐसे व्यक्ति को कर्ज से दूर रहना चाहिये क्योंकि ऐसा कर्ज आसानी से उतरता नही हैं।
2- धनेष व लग्नेष निर्बली हो तो जातक हमेशा कर्ज व रोग से परेशान रहता है। यदि इन स्थानों पर छठें स्थान का मालिक स्थित हो तो ऐसे जातक जीवन पर्यन्त कर्ज से मुक्त नही हो पाते।
3- ग्यारहवें स्थान को लाभ स्थान कहा गया लेकिन यदि ग्यारहवें व बारहवें स्थान के मालिक एक साथ स्थित हो तथा इन्हे षष्ठेश देखे तो व्यक्ति कर्ज दार होता हैं उसे कर्ज से निपटने के लिये अपनी पैतृक सम्पति तक को बेचना पड जाता हैं।
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4- यदि षष्ठेश मित्र होकर केन्द्र स्थान में स्थित हो तथा धनेष मजबूत स्थिति में हो तो व्यक्ति कर्ज दार अवश्य होता है लेकिन वह शीघ्र ही कर्ज से बाहर निकल जाता हैं।
5- यदि लग्न, धन या चतुर्थ स्थान के स्वामी की दशा आने वाली हो तो ऐसे समय में कर्ज लिया जा सकता हैं। ऐसा कर्ज प्रगति देने वाला होता है। इसके उलट व्ययेष या षष्ठेश की दशा आने वाली हो तो सावधान हो जाये तथा कर्ज इत्यादि के प्रति आकर्षित न होयें अपनी मेहनत पर विश्वास करें।
6- मेष, तुला मिथुन व धनु लग्न जातकों को किसी लालच के झांसे में आकर ऋण नही लेना चाहिये धोखा होने के अधिक संकेत होते हैं।
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