यहां पैर रखने से होगी मन की मुराद पूरी…

भारत धर्म और कर्म की भूमि कही जाती है। यहां अनेक योद्धाओं और विद्वानों ने जन्‍म लिया है। भारत के धार्मिक इतिहास और देवी देवताओं के विदेशी श्रद्धालु भी मुरीद हैं। इस धरती से अनेक रहस्‍य और रोचक घटनाएं जुड़ी हुई हैं जो सदा से देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। भारत में देवी-देवताओं के अनेक चमत्‍कारों को भी नमस्‍कार किया गया है। भारत की ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्‍व का बखान करते हैं ये निम्‍न पावन स्‍थल। आइए जानते हैं इनके बारे में -:

ज्वालादेवी का मंदिर

अखण्ड ज्योत के लिए प्रसिद्ध मां ज्वालादेवी का मंदिर भारत का रहस्यमयी मंदिर है जहां सदा बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हिमाचल प्रदेश में स्थित इस मंदिर में पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। बादशाह अकबर ने भी मां के चमत्‍कारी स्‍वरूप के आगे हार मान ली थी। अकबर ने मंदिर के प्रति अविश्वास की भावना से प्रज्जवलित ज्योत को बुझाने के लिए नहर बनवाई थी। लेकिन अकबर के कोई भी प्रयास सफल नही हुये, शीघ्र ही राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने माता की प्रसन्नता हेतु स्वर्ण छत्र चढाने का प्रयास किया जिसे माता ने अस्वीकार कर किसी अन्य धातु में परिवर्तित कर दिया था। विश्‍वास है कि मां के दरबार आने वाले हर भक्‍त की मनोकामना अवश्‍य पूर्ण होती है।

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कोणार्क का सूर्य मंदिर

भगवान सूर्य को समर्पित उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर की अपनी एक अलग एवं अनोखी मान्यता है। गिने चुने सूर्य मंदिरों में कोणार्क का सूर्य मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस मंदिर को सूर्य देव के रथ का स्‍वरूप दिया गया है। मन्दिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए हैं। पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए हैं। कोणार्क की सुंदरता का बखान करते हुए ‘रवींद्रनाथ टैगोर’ ने लिखा था- ‘कोणार्क, जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य से श्रेष्ठ  है। भारत के पास ये विश्व की धरोहर है’।

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महाकालेश्वर मंदिर

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है यहां होने वाली भस्म आरती जिसे देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि महाकालेश्वर के दर्शन को आए श्रद्धालुओं का आरती के बिना दान अधूरा है। हर बारह वर्ष में पड़ने वाला महाकुंभ मेला यहां का सबसे बड़ा मेला है जो विश्व भर में प्रसिद्ध है।

लिंगराज मंदिर       

भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1090-1104 में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती ने लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध यहीं पर किया था। भुवनेश्‍वर का लिंगराज मंदिर रचना सौंदर्य और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मंदिर की प्रत्येक शिला पर कारीगरों की मूर्तिकला का चमत्कार देखा जा सकता है। श्रद्धालु ही नहीं विदेश पर्यटक भी यहां आकर भोले का गुणगान करने लगते हैं।

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