कहते हैं कि भगवान विष्णु को एकादशी का व्रत अतिप्रिय है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार एकादशी का दिन काफी शुभ माना जाता है। इस दिन कुछ विशेष वस्तुओं का सेवन करना निषेध माना जाता है जैसे प्याज, लहसुन आदि। रीति अनुसार एकादशी के दिन तमोगुण प्रधान पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल का सेवन करना भी वर्जित है।
वैसे तो हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्यों में चावल का उपयोग किया जाता है लेकिन एकादशी के दिन चावल न खाने का नियम है। इस नियम का कारण एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।
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दरअसल, किवदंती है कि माता के क्रोध से रक्षा के लिए महर्षि मेधा ने देह त्याग दी थी। उनके शरीर का अंश भूमि में समा गया। कालांतर में वही अंश जौ एवं चावल के रूप में भूमि से उत्पन्न हुआ। जब महर्षि की देह भूमि में समाई, उस दिन एकादशी तिथि थी। अत: प्राचीन काल से ही यह परंपरा शुरू हो गई कि एकादशी के दिन चावल एवं जौ से बने भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसलिए एकादशी के दिन इन पदार्थों का सेवन महर्षि की देह के सेवन के समान माना गया है।
इसके अलावा एकादशी के दिन चावल न खाने का वैज्ञानिक कारण भी है।
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विज्ञान के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो जल तत्व की अधिकता मन को विचलित कर सकती है, क्योंकि जल और चंद्रमा में परस्पर आकर्षण होता है। चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार आता है। इस प्रकार चावल का अधिक सेवन करने पर यदि शरीर में जल तत्व की मात्रा अधिक होगी तो मन अशांत महसूस करता है।
अशांत मन से व्रत का पालन नहीं किया जाएगा। चूंकि एकादशी व्रत, संयम और साधना का दिन है। इसलिए मन को विचलित करने वाले पदार्थों से दूर रहने की हिदायत दी जाती है।
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