भगवान गणेश की आराधना काफी शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी का पूजन करना शुभ एवं मंगलकारी होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की विशेष पूजा एवं व्रत होता है।
गणेश चतुर्थी का व्रत करने से समस्त परेशानियां खत्म होती हैं और गणेशजी का आशीर्वाद मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों को पुत्र की इच्छा है वह लोग गणेश चतुर्थी का व्रत अवश्य रखें। गणेश जी की कृपा से शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति होती है।
इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 25 अगस्त को मनाया जा रहा है। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है लेकिन ये चतुर्थी इसलिए खास है क्योंकि इसे भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का व्रत एवं पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर के समय अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। गणेश चतुर्थी व्रत का संकल्प लें। संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार (16 सामग्रियों से) पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊं गं गणपतयै नम:) का जप करते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। भगवान श्रीगणेश को गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें और शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें। पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा प्रदान करने के बाद रात के समय चांद को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें।
गणेश चतुर्थी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह सहायता मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे।
देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की सहायता के लिए पहले जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा।
तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश जी अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा।
तब गणेश जी ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।’
यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
गणेश पूजन का शुभ समय
मध्याह्न गणेश पूजन समय : 11.06 से 13.39 तक
समयावधि : 2 घंटे 33 मिनट
24 तिथि को इस समय चंद्रमा ना देखें : 20.27 से 20.43 तक
समयावधि : 16 मिनट
25 तिथि को इस समय चंद्रमा ना देखें : 9.10 से 21.20 तक
समयावधि : 12 घंटे 9 मिनट
चतुर्थी तिथि की शुरुआत : 24 अगस्त की रात्रि को 8 बजकर 27 मिनट पर
चतुर्थी तिथि की समाप्त : 25 अगस्त को 8 बजकर 31 मिनट पर
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