ऐसी कठिन तपस्‍या के बाद कांवडियों को मिलती है शिव की कृपा…

सावन के पवित्र माह में कांवड यात्रा का प्राचीन महत्‍व है। माना जाता है कि यह यात्रा संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक माध्‍यम है। इस यात्रा में हजारों-करोड़ों शिवभक्‍त बम बम भोले का जयकारा लगाते हुए अनेक कष्‍टों का सामना कर भगवान शिव की कठोर तपस्‍या करते हैं। आज तक केवल कांवड़ यात्रा के धार्मिक पहलू के बारे में ही बात की गई है जबकि इस पावन यात्रा का मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। आइए हम आपको बताते हैं कांवड़ यात्रा से जुड़े कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍य -:

– कांवड़ यात्रियों को किसी भी प्रकार का नशा आदि करना पूरी तरह से वर्जित है। ऐसा करने से उनकी यात्रा खंडित मानी जाती है।

– कांवड़ यात्रा के नियम अत्‍यंत सख्‍त और कठोर होते हैं एवं इनका सख्‍ती से पालन करना अनिवार्य होता है।

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– यात्रियों को इस दौरान तामसिक वस्‍तुओं से भी दूर रहना पड़ता है क्‍योंकि तामसिक भोजन और वस्‍तु इत्‍यादि से मनुष्‍य के मन में नकारात्‍मक विचार उत्‍पन्‍न होते हैं।

– कोई भी व्‍यक्‍ति बिना स्‍नान किए किसी कांवड़ यात्री को नहीं छू सकता।

– कांवड़ यात्रियों को श्रृंगार सामग्री के साथ-साथ तेल, कंघी और साबुन का प्रयोग भी वर्जित है।

– यात्रियों को किसी भी वाहन में बैठने की मनाही है अथवा यात्रा के दौरान यह चारपाई का प्रयोग भी नहीं कर सकते।

– इस यात्रा में चमड़े की वस्‍तु का प्रयोग और स्‍पर्श वर्जित है।

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– कांवड़ को किसी वृक्ष अथवा पौधे के नीचे रखने की मनाही है।

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