आज के कमप्यूटर युग में नेत्र विकारों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढता जा रहा है। छोटी उम्र में चश्मा लगना आम बात हो चुकी है। विज्ञान की आधुनिक खोज व नई तकनीके इन रोगों को ठीक करने में प्रयाप्त नही है। प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि मंत्रों के द्वारा अनेक जटिल रोगों को दूर कर देते थे। ऐसे कई प्रसंग हैं जिनमे उन्होने अंधों को देखने की शक्ति प्रदान करी हैं। इस लेख के द्वारा मैं आपकों ऐसा ही ऋग्वेद का एक अचूक मंत्र और उसकी प्रयोग विधि बताऊंगा जिसके द्वारा गम्भीर से गम्भीर नेत्र विकार दूर हो जाते है। इस चक्षु विद्धा को मेंने कई बार सफल होते हुये देखा है आप भी इससे लाभंवित होइये और ओरों को भी लाभंवित किजिये-
नाम, यश, सुख-समृद्धि व प्रसन्नता सब कुछ दे सकता है बलवान सूर्य…..
विधि- किसी भी सिद्ध मूहूर्त में इस मंत्र का आरम्भ करना चाहिये। सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें उसके बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिये। अर्घ्य के पश्चात एक कांसे की थाली लें उस पर गंगाजल का छिडकाव करें, उसके बाद थोडा सा गाय का शुद्ध घी लेकर थाली के मध्य में रखें तथा उपरोक्त मंत्र बोलते हुये दायें हाथ की तर्जनी उंगली से उसे घुमाये तथा अपने बायें हाथ से उस पर जल की धारा प्रवाहित करते रहें। मंत्र पश्चात जल को निकाल दें। दोबारा मंत्र बोलते हुये घी को घुमायें और जल प्रवाहित करें। इस तरह 11 बार मंत्र का जाप करें तथा घी को पवित्र करें। जाप के पश्चात सूर्य देव का ध्यान करें तथा उस सिद्ध किये हुये घी को अपने नेत्रों में लगाये। इस चक्षु विद्धा का निरंतर 41 या 61 दिन तक प्रयोग करना चाहिये।
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