हिंदू धर्म में दिशाओं को पहचान कर उसके अनुसार कर्म किये जाते रहे हैं। शास्त्रों में दस दिशाओं का वर्णन मिलता है। प्रत्येक दिशा अपने अंदर विशिष्ट प्रभाव रखती है। ज्योतिष शास्त्र में इन दिशाओं का मानव जीवन में पडने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। सम्पूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं पर अधारित है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक राशि एवं ग्रह किसी न किसी दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन ग्रहों व राशियों का प्रभाव ही व्यक्ति को सफल व असफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्योतिष शास्त्र और कार्य दिशा-
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1- जिन जातकों के दशम स्थान पर शनि बलवान होकर स्थित हो उन्हे पश्चिम दिशा में प्रयास करना चाहिये ये दिशा निसंदेह दोगुणी क्षमता से आपको सफल कर सकती है। इसके अतिरिक्त वृषभ, कन्या व मकर राशि जातक भी पश्चिम दिशा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
2- यदि दशम स्थान पर सूर्य या गुरु स्थित हो तो ऐसे जातकों को पूर्व दिशा में अत्यधिक सफलता प्राप्त होती है। मीन, कर्क और वृश्चिक राशि जातकों को पूर्व दिशा में जाकर कार्य करने से अधिक सफलता प्राप्त होती है। यदि इन लग्नों का कर्मेश लग्न को प्रभावित करे तो सफलता अवश्य मिलती है।
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3- जिन जातकों की जन्म कुंडली के दशम स्थान पर मंगल स्थित हो उन्हे दक्षिण दिशा में सफलता प्राप्त होती है। सिंह, धनु या मेष लग्न होने पर भी व्यक्ति को दक्षिण दिशा में सफलता प्राप्त होती है।
4- जन्म कुंडली के दशम स्थान पर शुक्र या चंद्र स्थित हो अथवा तुला, कुम्भ, मिथुन लग्न हो तो जातक उत्तर दिशा में सफलता प्राप्त करता है।
5- यदि जन्म कुंडली में लग्नेश द्वादश अथवा अष्टम स्थान में स्थित हो तो जातक को अपने घर बार से दूर जाना पडता है। जन्म स्थान से विपरीत दिशा में जाने से सफलता प्राप्त होती है।
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6- लग्न में राहु स्थित हो तथा कर्मेश यदि अष्टम या बारहवें स्थान पर स्थित हो तो जातक को विदेश में सफलता प्राप्त होती है।
7- आंकडों से सम्बंधित काम, लेन-देन का काम, बीमा, धन से सम्बंधित सभी कामों को उत्तर दिशा में करना चाहिये।
8- इलेक्ट्रानिक, जमीन-भूमि, तकनीकी काम, कमप्यूटर से जुडे काम आदि जन्म स्थान से दक्षिण दिशा में करना चाहिये।
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9- यात्रा, गमन, साफ-सफाई, गूढ विद्धा से जुडे कार्य, भूमि से प्राप्त वस्तुयें खनिज रत्न, पेट्रोल, डीजल, जुआं व सट्टे से जुडे कार्य, निर्माण कार्य, श्रम एवं समाज कल्याण से जुडे कार्य आदि अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिशा में जाकर करने चाहिये।
10- पूर्व दिशा में सभी धार्मिक कार्य, शिक्षा से जुडे कार्य, जल व द्रव्य से सम्बंधित कार्य, सरकारी क्षेत्रों से सम्बन्धित, दवाई व औषधी से सम्बंधित, धर्म व सेवा कार्य आदि पूर्व दिशा में करने चाहिये।
11- जन्म कुंडली का कर्मेश जिस भाव में उच्च या बली होकर स्थित हो उस दिशा में सफलता प्राप्त होती हैं। लग्न को पूर्व दिशा, दशम स्थान को दक्षिण दिशा, सप्तम स्थान को पश्चिम दिशा तथा चतुर्थ भाव को उत्तर दिशा के रूप में जाना जाता है।
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