शिव के रुद्र रूप हैं, काल भैरव ….

पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। एक बार विष्णु और ब्रह्मा प्रमाद वश अपने को सर्वश्रेष्ट समझकर अहंकार युक्त हो गये। दोनों में ही इस बात को लेकर झगडा होने लगा की सम्पूर्ण ब्राह्मंड का रचयिता कौन हैं। दोनों ही देव अपने को ब्राह्मंड का रचनाकार समझ रहे थे। जब इस विवाद को काफी समय हो गया तब दोनों देवों ने निर्णय किया की वेद ही सर्वश्रेष्टता निर्धारित करेंगे, उन्होने जब वेदों से पूछा तब चारों वेद ने एक स्वर में कहा-

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“जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, वो अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान शिव ही हैं। जो निरंतर प्रणव मंत्र ओम का जाप करते हैं एवं महाकल्याण कारी हैं वे शिव ही सर्वश्रेष्ट व सम्पूर्ण चराचर जगत के रचयिता हैं।” वेदों के कथन सुनकर ब्रह्मा जी अत्यधिक क्रोधित हुये और शिव की घोर निंदा करने लगे। उसी समय दिव्यज्योति के रूप में एक बालक उत्पन्न हुआ और वह रुदन करने लगा, ब्रह्मा जी को ऐसा प्रतीत हुआ की ये बालक मेरे क्रोध से उत्पन्न हुआ हैं, तब उन्होने उस बालक को शांत करते हुये वरदान दिया की तुम रुदन रूप में प्रकट हुये हो तुम्हारा नाम रुद्र होगा तथा तुम दुष्टों को उनके पापों की सजा देने वाले होंगे।

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ब्रह्मा जी के इन वचनों को सुनकर उस बालक ने अत्यंत विकराल और भयंकर अट्टाहस करते हुये ब्रह्मा की गर्दन को अपने हाथ की छोटी उंगली के नाखून से काट दिया और कहा तुमने इस मुहं से शिव निंदा करी थी। ब्रह्मा की गर्दन का छेदन होते ही, सारा अहं नष्ट हो गया, तत्पश्चात ब्रह्मा और विष्णु दोनों शिव की स्तुति करने लगे। तब भगवान महादेव प्रकट हुये और उन्होने दोनों देवों को अभय वरदान दिया तथा भैरव से बोले हे भैरव आपने ब्रह्म हत्या करी हैं जिसका प्रायश्चित आपको करना पडेगा। तीनों लोकों का भ्रमण कर जब आप काशी में प्रवेश करोगे तब ब्रहम हत्या से आपको मुक्ति मिलेगी।

महादेव का भैरव अवतार सभी अवतार व रुपों में सर्वाधिक भयानक हैं। भैरव देव अनेक चिंताओं का हरण करने वाले हैं। पुराणों में कहा गया हैं भोले नाथ शिव रूप में महाकल्याण करते हैं तथा भैरव रूप में सहांर व नाश करते हैं। भैरव देव को काशी का कोतवाल कहा जाता हैं। काशी में भैरव देव ही काल के रूप में सब के पाप पुण्यों का लेखा जोखा रखते हैं तथा अपने अनुसार फल देते हैं।

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