महाभारत काल
महाभारत का हर एक पात्र काफी रहस्यमयी और दिलचस्प है। प्राचीन काल की धार्मिक कथाओं में महाभारत काल काफी लोकप्रिय और रहस्यों से भरा है। इस काल में एक ओर जहां धर्म के पालन हेतु कई त्याग किए गए तो वहीं दूसरी ओर अधर्म का भी खूब बोलबाला रहा। महाभारत का चर्चित पात्र दुर्योधन ही है जिसके कारण महाभारत के युद्ध का आरंभ हुआ था।
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हिंसा और अधर्म
अहंकार से भरे दुयोर्धन ने भले ही अपने पूरे जीवन में केवल हिंसा और अधर्म किया हो लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने अंतिम समय में उसे अपनी हार का कारण ज्ञात हो गया था। अपनी मृत्युशैय्या पर लेटे हुए दुर्योधन को अनुभव हो गया था कि काश उसने जीवन में वे तीन गलतियां न की होती तो आज उसकी और उसके भाइयों की यह दशा नहीं होती।
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दुर्योधन की हार का कारण
किवदंती है कि महाभारत युद्ध के भयंकर अंत और उत्पात के बाद दुर्योधन को छोड़कर सभी कौरव मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। तब मृत्युशैय्या पर लेटे हुए दुर्योधन का मन अपनी हार के कारणों को लेकर काफी विचलित था। उसे लग रहा था कि काश उसने वह चार गलतियां न की होती तो आज जीत का ताज उसके सिर पर होता। वह अपने हाथ की तीन उंगलियों को बार-बार उठाकर कुछ बड़बड़ा रहा था लेकिन पीड़ा के कारण उसकी ध्वनि साफ सुनाई नहीं दे रही थी।
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दुर्योधन के मन की बात
इस अवस्था में केवल श्रीकृष्ण ही थे जो दुर्योधन के मन की बात समझ सकते थे। श्रीकृष्ण दुर्योधन के निकट गए तब दुर्योधन ने अपनी तीन अंगुलियां हवा में लहराते हुए उनसे कहा कि ‘अगर मैंने जीवन में तीन गलतियां न की होती तो आज जीत का ताज मेरे सिर पर होता’। दुर्योधन ने ग्लानि से परिपूर्ण होकर श्रीकृष्ण से कहा कि युद्ध के आरंभ में आपके स्थान पर नारायणी सेना को चुनना, अपनी माता के समक्ष लंगोट पहनकर जाना और रणभूमि में सबसे अंत में उतरना ही मेरी हार के प्रमुख कारण बने।
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अधर्मी व्यवहार
दुर्योधन की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने प्रेम भाव से उसे समझाया कि हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्रहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा।
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