ज्योतिषशास्त्र में 9 ग्रहों के बारे में बताया गया है जिनमें से शनि देव को सबसे क्रूर माना जाता है। इसके बाद राहु केतु भी अधिकतर अशुभ प्रभाव ही देते हैं। ये दोनों ही छाया ग्रह हैं और जिस भी ग्रह के साथ बैठते हैं उसे भी दूषित कर देते हैं।
ज्योतिष के अंर्तगत इन नौ ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही व्यक्ति को जीवन में सुख और दुख मिलते हैं। आइए जानते हैं कि नौ ग्रहों में सबसे अधिक क्रूर कहे जाने वाले राहू और केतु क्या और कैसे प्रभाव देते हैं।
छाया ग्रह क्यों कहा जाता है
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि राहु और केतु दो छाया ग्रह हैं और ये सूर्य, चंद्र, मंगल आदि ग्रहों की तरह धरातल वाले ग्रह नहीं होते हैं। इसलिए इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। इनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है।
राहु को शांत करने के लिए करें ये उपाय
शनि की तरह भयभीत
शनि के बाद क्रूरता में किसी ग्रह का नाम आता है वो राहु और केतु ही हैं। शनि के दोष में भी कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है और राहु काल में किसी नए कार्य की शुरुआत करना वर्जित है।
मंथन से निकला राहु
किवंदती है कि समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी और अमृत कलश के साथ राहु ग्रह भी निकला था। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन देवताओं और दानवों के बीच अमरता पाने के लिए हुआ था।
राहु की माता
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह दैत्य विप्रचित से हुआ था। विवाह के बाद सिंहिका ने सौ पुत्रों को जन्म दिया था जिसमें सबसे बड़ा पुत्र राहु था।
केतु की शांति के लिए इसकी करें पूजा
भगवान विष्णु को दिया धोखा
समुद्र मंथन के बाद जब भगवान विष्णु देवताओं को मोहिनी रूप में रसपान करवा रहे थे तब राहु भी देवताओं में आकर बैठ गया और गलती से भगवान विष्णु ने उसे अमृत पान करवा दिया किंतु तभी सूर्य और चंद्रमा ने राहु को पहचान लिया। उस समय भगवान विष्णु ने अपने चक्र से राहु का सिर काट दिया। राहु का सिर और धड़ दोनों अलग हो गए किंतु अमृत पान की वजह से उसका सिर और धड़ दोनों अमर हो गए और राहु-केतु के नाम से जाने गए।
शिव ने किया राहु का संहार
अमर होने के कारण राहु से सभी देवताओं को भय होने लगा। सभी देवता राहु के संहार के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। तब शिवजी ने श्रेष्ठ चंडिका को मातृकाओं के साथ भेजा। उस समय देवताओं ने राहु के सिर को अपने पास ही रोक रखा जबकि बिना सिर के राहु का धड़ मातृकाओं के साथ युद्ध करता रहा।
ग्रह बन गया राहु
राहु को ग्रह की उपाधि दी गई किंतु उसने तब भी सूर्य और चंद्रमा को क्षमा नहीं किया। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन राहु आज भी सूर्य औश्र चंद्र को ग्रसता है। इसे ही सूर्य ग्रहण और चंद्र गहण कहा जाता है।
अंधकार युक्त ग्रह
राहु को ऋषि पराशर ने तमो यानि अंधकार युक्त ग्रह बताया है। राहु और केतु को किसी राशि का स्वामी नहीं बनाया गया है। राहु मिथुन में उच्च और धनु में नीच का होता है।
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