शनि का नाम लेते ही मन में भय व शंका घर कर जाती है। ज्योतिषी ज्ञान के अनुसार शनि लालच, मोह, गरीबी, दुख, पीड़ा, रोग और वात रोगों का कारक है। शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है। आपकी कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है। शनि को कष्टप्रदाता के रूप में अधिक जाना जाता है। शनि के गोचर से मनुष्य हमेशा ही भयभीत रहता है।
चन्द्र राशि के एक राशि पहले, उसके साथ एवं इससे एक राशि आगे शनि के गोचर को चन्द्र राशि से साढ़े साती के रूप में जाना जाता है। भारतीय ज्योतिष में चन्द्र को मन बताया गया है। अनेक पीड़ाओं का कारक ग्रह मन से नजदीक है यह सोचकर ही किसी भी जातक को भय की अनुभूति होने लगती है किंतु शनि की साढे साती का सत्य यही है।
अन्य सभी ग्रहों में शनि अत्यधिक मंद गति से चलता है। अत: इसी कारण शनि का किसी भी राशि में प्रभाव सबसे लंबे समय तक रहता है।
प्रत्येक जन्मकुंडली में शनि अपने प्रभुत्व के अनुसार ही जातक को फल देता है। शनि ग्रह का यही नियम इसकी साढ़े साती की दशा के समय भी प्रयुक्त होता है। मेरे अनुसार, जन्म पत्रिका में अपनी स्थिति के अनुसार ही शनि फल देता है। यदि शनि किसी शुभ ग्रह का स्वामी है अथवा शुभ ग्रह में स्थित है तो यह शनि की साढ़े साती के समय शुभ फलदायी होगा अथवा अशुभ ग्रह का स्वामी और अशुभ ग्रह में स्थित होने पर यह शनि के साढ़े साती के समय अशुभ फलदायी रहेगा।
चन्द्रमा से ४, ८, १० वे भाव में शनि ग्रह के गोचर को कंटक शनि या ढैया कहा जाता है। मेरे ज्यातिषी ज्ञान के अनुसार जन्म कुंडली में ढैया के समय में यदि शनि शुभ ग्रह का स्वामी है अथवा किसी शुभ ग्रह में स्थित है तो वह शुभ फलदायी होगा अथवा शनि की साढ़े साती की तरह शनि के अशुभ स्थान में होने के कारण यह अशुभ फल देगा। शनि का गोचर चंद्रमा से चौथे घर में चतुर्थ भाव से संबंधित फल जैसे घर, ह्रदय, रक्तचाप और माता को प्रभावित करेगा। आठवें घर में चंद्र से स्वास्थ्य, प्रॉपर्टी और दसवें घर में नौकरी और व्यवसाय को प्रभावित करेगा।
शनि का प्रभाव सदा इसके स्थान पर निर्भर करता है। यदि शनि शुभ स्थान पर है तो यह शुभ फलदायी होगा अथवा इसके अशुभ स्थान पर होने की स्थिति में यह निश्चित ही अशुभ फल देगा। साढ़े साती में शनि के अशुभ स्थान पर न होने की स्थिति में जातक को चिंता एवं भयभीत होने की जरूरत नहीं है।
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