ओशाे के विचार
आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश के प्रवचन को लोग काफी मानते हैं। ओशो ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं। ओशाे के क्रांतिकारी विचारोंं ने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों को प्रभावित किया। लेकिन ओशो के कुछ विचार ऐसे भी हैं जिनसे सहमत हो पाना बेहद कठिन सा लगता है। आज हम आपको ओशो के कुछ ऐसे ही विचारों के बारे में बताएंगें जो हमेशा विवादों में तो रहे ही साथ ही लोगों ने इन विचारों का समर्थन करना भी उचित नहीं समझा।
गांधी जी की विचारधारा
– ओशो ने अपने अधिकतर प्रवचनों में गांधीजी की विचारधारा का विरोध किया है। ओशो के अनुसार गांधी जी की विचारधारा मनुष्य को पीछे की ओर ले जाती है। यह आत्मघाती विचारधारा है।
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सन्यास का उल्लेख
– ओशो ने अपने एक प्रवचन में ऐसे सन्यास का उल्लेख किया है जिसमें संन्यासी को कोई भगवा या गेरुए वस्त्र पहनने की जरूरत नहीं। माला और नियमों का पालन करने की जरूरत नहीं। पूजा-पाठ, ईश्वर-प्रार्थना आदि करने की जरूरत नहीं। बस प्रतिदिन ध्यान करने की शर्त है।
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परिवार की परंपरा
– ओशो के विचारों के अनुसार परिवार की परंपरा को समाप्त कर कम्यून की अवधारणा को स्थापित करना। ओशो की नजर में जब परिवार की जरूरत नहीं तो विवाह गौण हो जाता है।
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सिद्धांत
– ओशो ने कहा है कि सालों से इंसान को विश्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं, जो कि एकदम मिथ्या हैं, झूठे हैं, जो केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं।
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ईश्वर-विरोधी विचारधारा
– ओशो ने ईश्वरवादी और ईश्वर-विरोधी दोनों ही विचारधाराओं का विरोध किया। ईश्वरवादी मंदिर, मस्जिद, चर्च, सिनेगॉग आदि जगहों पर जाकर ईश्वर से चूक गए और ईश्वर-विरोधी इनसे लड़कर चूक गया।
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