बृहस्पति और शुक्र
सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना हर कोई करता है लेकिन कम लोग ही इतने खुशकिस्मत होते हैं जिनका संपूर्ण वैवाहिक जीवन सुख से परिपूर्ण रहे। बृहस्पति और शुक्र दोनों ही विवाह से संबंधित ग्रह हैं। ये दोनों ग्रह विवाह में सुख-दुख, संयोग और वियोग का फल सुनिश्चित करते हैं। शुक्र और बृहस्पति ग्रह दोनों ही शुभ माने जाते हैं।
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जन्मकुंडली
जन्मकुंडली में सप्तम भाव जीवनसाथी का घर होता है। इस घर में शुक्र और बृहस्पति की स्थिति एवं प्रभाव पर ही दाम्पत्य जीवन की खुशियां निर्भर करती हैं। पुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह पत्नी सुख का कारक है तो वहीं स्त्री की कुंडली में बृहस्पति पति सुख का कारक होता है। जन्मकुंडली में इन दोनों ग्रहों की स्थिति और ये जिस स्थान को देखते हैं उसके अनुसार ही इन्हें जीवनसाथी मिलता है एवं इसी पर इनका दाम्पत्य सुख भी निर्भर करता है।
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बृहस्पति का प्रभाव
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बृहस्पति जिस भाव में बैठा होता है उस भाव के फल को दूषित करता है अथवा जिस भाव पर यह अपनी दृष्टि रखता है उस भाव से संबंधित शुभ फल प्रदान करता है। शुक्र का भी सप्तम भाव में उपस्थित होना अशुभ समझा जाता है। सप्तम भाव में शुक्र अपने प्रभाव से जातक को कामुक बना देता है जिससे उसके विवाहेत्तर संबंधों की संभावना बढ़ जाती है। विवाहेत्तर संबंधों के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश होता है और दाम्पत्य सुख को विराम लग जाता है।
गुरु की कृपा
जन्मकुंडली में सप्तम भाव में गुरु की उपस्थिति विवाह में देरी और वैवाहिक सुख में कमी लाती है। गुरू के ऐसे प्रभाव के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश, पीड़ा एवं क्रोध बना रहता है। पति-पत्नी के बीच अनबन होती रहती है जिससे वैवाहिक संबंध की शांति नष्ट होती है।
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सप्तम भाव
स्त्री हो या पुरूष दोनों की ही जन्मकुंडली में यदि सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युति या दृष्ट होता है तो उसे उत्तम गुणों वाले जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
Date of birth 08021990 time of birth 08am sagar madhya pradesh.
Meri job kab tak lgegi Or meri shidi kab kahan kisse hogi vah konsi job me hoga.
Yas