ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में राहु और केतु के विशेष स्थिति में होने पर कालसर्प योग बनता है। कालसर्प दोष के बारे में कहा गया है कि यह जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या श्राप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में बनता है।
यदि कुंडली के लग्न भाव में राहु विराजमान हो और सप्तम भाव में केतु ग्रह उपस्थित हो तथा बाकी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो कालसर्प दोष योग का निर्माण होता है।
काल सर्प दोष से प्रभावित जातक को सपने में सांप और पानी दिखाई देने के साथ-साथ स्वयं को हवा में उड़ते देखना, कार्यों में बार-बार अड़चनें आती हैं और साथ ही इनके विचारों में बार-बार बदलाव आते हैं और कोई भी काम करने से पहले मन में नकारात्मक विचार आते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगता। यह जातक नशा करते हैं।
कालसर्प दोष से पीडित जातक की सेहत खराब रहती है और उनकी आयु भी कम होती है। यह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहते हैं। इन जातकों को आर्थिक, व्यवसाय और करियर के क्षेत्र में काफी मेहनत करनी पड़ती है। इन्हें दोस्तों और बिजनेस पार्टनर से धोखा मिलता है। सफलता पाने में मुश्किलें आती हैं।
कुंडली में कालसर्प दोष के कारण जातक के विवाह में देरी आती है, उसे कोई पुराना रोग घेरे रहता है एवं इन्हें पैतृक संपत्ति का नुकसान होता है। इन दोष से प्रभावित जातकों की वाहन दुर्घटना की संभावना रहती है और आत्मविश्वास में कमी आती है। ये वित्तीय और कानूनी समस्याओं के कारण परेशान रहते हैं। इस योग में उत्पन्न जातक का जीवन व्यवसाय, धन, परिवार और संतान आदि के कारण अशांत रहता है।