कृष्णमूर्ति पद्धति में किसी भी भविष्यवाणी के लिए जन्म समय की सटीक जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। कई मामलों में जन्म तिथि से जुड़ी गलतियां एवं त्रुटि देखी जाती हैं। कृष्णमूर्ति पद्धति के अंतर्गत कुछ मिनट और सैकेंड का परिवर्तन होने पर ही जातक की कुंडली में भाव के उप नक्षत्र स्वामी में बदलाव आ जाता है।
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कृष्णमूर्ति पद्धति में किसी भी भविष्यवाणी के लिए जन्म समय की सटीक जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। कई मामलों में जन्म तिथि से जुड़ी गलतियां एवं त्रुटि देखी जाती हैं। कृष्णमूर्ति पद्धति के अंतर्गत कुछ मिनट और सैकेंड का परिवर्तन होने पर ही जातक की कुंडली में भाव के उप नक्षत्र स्वामी में बदलाव आ जाता है।
इस त्रुटि के कारण भविष्यवाणी निष्फल भी हो सकती है। श्री कृष्णमूर्ति के पास किसी भी भाव और ग्रहों की दशा को जानने की तकनीक है जिसे ‘रूलिंग प्लैनेट्स’ के नाम से जाना जाता है। वे कुछ क्षण मात्र में ही जातक का सही जन्म समय निर्धारित कर लोगों को आश्चर्यचकित कर देते थे। शुद्धता और यर्थाथता किसी भी विषय का उत्तम प्रमाण होता है। जन्म समय में त्रुटि के निवारण हेतु जन्म समय की त्रुटि में सुधार के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति में विभिन्न तरीके हैं। लेकिन मैं श्री कृष्णमूर्ति जी की त्रुटि रहित पद्धति का अनुसरण करता हूं, आप अपनी सुविधानुसार किसी भी पद्धति को चुन सकते हैं।
रूलिंग प्लैनेट्स वे ग्रह हैं जो ज्योतिषाचार्य को किसी भी सवाल एवं समस्या का हल निकालने के लिए प्रेरित करतें हैं। दिन स्वामी के साथ नौ ग्रहों में से चंद्रमा और लग्न जैसे प्रभावशाली कारक को श्री कृष्णमूर्ति में अधिक वरीयता दी जाती है। अत: किसी भी क्षण में रूलिंग प्लैनेट्स मजबूती के क्रम में इस प्रकार होते हैं -:
लग्न नक्षत्र स्वामी
लग्न स्वामी
चंद्र नक्षत्र स्वामी
चंद्र राशि स्वामी
दिन स्वामी
राहु-केतु के संयुक्त, एक दूसरे पर दृष्टि होने पर अथवा किसी घर में बैठे हैं तो उस रूलिंग ग्रह का चिह्न शक्तिशाली रूलिंग प्लैनेट माना जाता है। याद रखें कि वो ग्रह जो लग्न स्वामी और चंद्रमा की स्थिति को प्रभावित करेगा वह भी रूलिंग प्लैनेट जैसा ही प्रभाव देगा। कुछ लोगों का मानना है कि रूलिंग प्लैनेट्स की संख्या बढ़ने पर जैसे एक से ज्यादा रूलिंग प्लैनेट्स होने पर निर्णय लेने में परेशानी होती है। कुछ हद तक यह तथ्य सही है लेकिन हमें अपने विवेक एवं निर्णायक सोच के अनुसार सही निर्णय लेना चाहिए। कृष्णमूर्ति पद्धति में किसी भी समस्या का हल 1-249 के बीच की किसी एक संख्या को निर्धारित करके भी निकाला जाता है। इसलिए अपनी समझदारी और व्यावहारिक ज्ञान से आपको रूलिंग प्लैनेट्स को नियोजित करना चाहिए।
सामान्यत: लग्न ‘स्वयं’ को दर्शाता है, इसलिए यह जरूरी है कि लग्न पर उप-उपनक्षत्र स्वामी के स्तर तक ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव निर्धारित कर लिया जाए। यह निर्धारण अन्य निर्धारण जातक के लिए अ न्य 11घरों को बड़ी सहजता से व्यवस्थित कर देता है। संशय की स्थिति में किसी विशेष भाव, ग्रह और दशा को निर्धारित कर लेना उचित रहता है जैसे कि कृष्णमूर्ति जी ने कहा है। इस विषय पर मैं अपने अगले लेखों में कुछ व्यवहारिक उदाहरण प्रस्तुत करूंगा।
कोई भी ग्रह या भाव किसी राशि, नक्षत्र, उपनक्षत्र या उप-उपनक्षत्र में होगा जिन्हें विभिन्न ग्रह प्रभावित करते हैं। यह ग्रह अपने क्षेत्र के टैनेंट्स को भी प्रभावित करते हैं। हमें भाव और ग्रह के अनुसार इन क्षेत्रों को व्यवस्थित करना चाहिए। इस व्यवस्थित ग्रहीय व्यवस्था द्वारा जातक के भविष्य का सही आंकलन अवश्य किया जा सकता है। इसी प्रक्रिया को संशोधन (rectification) कहा जाता है।
जन्म के समय रूल करने वाले ग्रह ही ज्योतिषीय आंकलन को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि ज्योतिषी उस विशेष क्षण के अनुसार ही जन्मकुंडली बनाते हैं। रूलिंग प्लैनेट्स को जानने के लिए जातक की समस्या और उसका प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि जातक अपना सटीक जन्म समय जानना चाहता है तो केवल रूलिंग प्लैनेट्स द्वारा ही जन्म के समय के लग्न के बारे में बताया जा सकता है। अन्यथा यदि जातक अपने विवाह के समय के बारे में जानना चाहता है तो रूलिंग प्लैनेट्स के साथ 2-7-11 घर द्वारा आप उसके विवाह का समय ज्ञात कर सकते हैं।
किसी भी जातक की जन्मकुंडली में रूलिंग प्लैनेट्स और भी बहुत कुछ कहते हैं लेकिन इस लेख में मैं रैक्टिफिकेशन पर ही खत्म करता हूं।