पंजाब के बटाला में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित अचलेश्वर मंदिर का सिख और हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता है। भगवान शिव से रूष्ट होकर पुत्र कार्तिकेय इसी स्थान पर आकर बसे जिसके बाद वे यहां अचलेश्वर के रूप में पूज्य बने। प्राचीन विशाल सरोवर के बीचों-बीच भगवान शंकर का विशाल मंदिर, किनारे पर कार्तिक जी का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर और दूसरी तरफ विशाल गुरुद्वारा देश की अखंडता व एकता का परिचायक है। बटाला के इस पवित्र मंदिर के निकट सिख समुदाय का गुरूद्वारा श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। मान्यता है कि यहीं पर सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव जी ने वर्ष 1485 में मूल चंद चौना की पुत्री सुलखनी से विवाह किया था। ऐसा माना जाता है कि अचलेश्वर धाम में जो नौवीं के पर्व पर लगातार 40 दिन पवित्र सरोवर में स्नान कर सच्चे मन से पूजा अर्चना करे उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
पौराणिक कथा
प्रचलित कथाओं के अनुसार भगवान शंकर जी व मां पार्वती ने अपने पुत्रों कार्तिक जी व गणेश जी का बुद्धि परीक्षण कर श्रेष्ठ को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया। भोलेनाथ जी ने दोनों से तीनों लोकों की परिक्रमा कर सबसे पहले कैलाश पहुंचने को कहा। कार्तिक जी मयूर पर सवार होकर कुछ क्षणों में ही आंखों से ओझल हो गए और बुद्धिमान व माता पिता के प्रिय गणेश जी ने भगवान शंकर को ही तीनों लोकों का स्वामी मान उनकी परिक्रमा कर ली और भगवान शिव के उत्तराधिकारी बने। यह बात जानकर कार्तिकेय जी रूष्ट होकर धरती पर उतरकर तपस्या करने लगे। तो स्वयं भगवान शंकर और मां पार्वती 33 करोड़ देवी-देवताओं को साथ लेकर कार्तिक जी को मनाने यहां पधारे परन्तु कार्तिक जी ने जब कैलाश न जाकर यहीं अचल रहने का निर्णय सुनाया तो भगवान शिव ने उन्हें अचलेश्वर महादेव की उपाधि देकर नौवीं का अधिकारी घोषित किया। यही स्थान आज श्री अचलेश्वर महादेव तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
अन्य पर्यटन स्थल
इस प्रसिद्ध मंदिर के अतिरिक्त श्रद्धालु गुरूद्वारा कंध साहिब, श्री नामदेव दरबार, मुकेश्वर मंदिर, कबूतरी दरवाजा, झूलना महल, भरत साहिब, पंडोरी धाम मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर भी घूम सकते हैं।
कैसे पहुंचे
गुरदासपुर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए अमृतसर में राजा सांसी एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है। रेल यात्री गुरदासपुर रेवले स्टेशन से बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।