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Mahabalipuram Temple

तमिलनाडु के दक्षिणी राज्य के अंदर बंगाल की खाड़ी के किनारे पर स्थित महाबलिपुरम मंदिर का धार्मिक महत्‍व तो है ही, इसके अलावा पर्यटन के लिहाज से भी यह मशहूर है। तमिलनाडु का यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर-तटों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। यहां के तीन मंदिर प्रसिद्ध हैं। शिव के दो मंदिरों के मध्‍य भगवान विष्णु का मंदिर हैं। यहां पर निर्मित पल्लव मंदिरों और स्मारकों के मिलने वाले अवशेषों में चट्टानों से निर्मित अर्जुन की तपस्या, गंगावतरण जैसी मूर्तियों से युक्त गंगा मंदिर और समुद्र तट पर बना शैव मंदिर प्रमुख हैं। ये सभी मंदिर भारत के प्राचीन वास्तुशिल्प के गौरवमय उदाहरण माने जाते हैं। इस नगर के पांच रथ या एकाश्म मंदिर, उन सात मंदिरों के अवशेष हैं, जिनके कारण इस नगर को सप्तपगोडा भी कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी के सागर की लहरें महा आकर्षक मंदिरों के जिस समूह से टकराती हैं, उन्हें महाबलिपुरम के नाम से जाना जाता है। मंदिर से टकराती सागर की लहरें एक अनोखा दृश्य प्रस्तुत करती हैं।  इन मंदिरों का निर्माण दक्षिण भारत के प्रसिद्ध प्राचीन पल्लव राजवंश के शासनकाल में शुरू हुआ तथा राजा महेंद्रवर्मन द्वारा इनका प्रमुख भाग निर्मित करवाया गया।

मुख्‍य आकर्षण

बंगाल की खाड़ी के सागर के निकट स्थित इस मंदिर का सौंदर्य अद्भुत है। मंदिर से टकराती सागर की लहरें एक अनोखा दृश्य प्रस्तुत करती हैं।  मंदिर की दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक देखने को मिलती है। एक चित्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए दिखाया गया है। यहां पर महाभारत के पांच पांडवों के नाम पर इन रथों को पांडव रथ कहा जाता है। पांच में से चार रथों को एकल चट्टान पर उकेरा गया है। द्रौपदी और अर्जुन रथ वर्ग के आकार का है। एक भीम रथ है। धर्मराज रथ सबसे ऊंचा है।

पौराणिक कथा

किवदंती है कि इस स्थान पर राजा बलि अपने बल, तप, तेज तथा वैभव के साथ-साथ अपनी दानवीरता के लिए भी प्रसिद्ध थे। एक बार उनकी दानवीरता की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण के रूप में उनसे मात्र तीन कदम भूमि दान में मांगी, परंतु जब ब्राह्मण रूपी उस वामन अवतार द्वारा मात्र अढ़ाई कदमों में सारी धरती को माप लिया गया, तो महादानी राजा बलि ने उनके पांव रखने के लिए अपना सिर ही आगे कर दिया। कहा जाता है कि प्रभु के वामनावतार के पांव का वेग व भार इतना था कि उससे राजा बलि अपने राज्य के उस भू-भाग सहित धरती के नीचे धंस कर पाताल में जा पहुंचा और इसी कारण आज तक पाताल लोक में राजा बलि का राज है और इसी वेग में अन्य मंदिर डूब गए।

महाबलीपुरम् के प्रसिद्ध मंदिर

इस प्राचीन शहर में सी शोर मंदिर, अर्जुन की तपोस्‍थली, पंच पांडव रथ, कृष्‍ण माखन बॉल, कृष्‍ण मंडपम, महिषासुर मर्दनी गुफा, पंच पांडव गुफा, वराह गुफा मंदिर, वराह मंडपम, त्रिमूर्ति गुफा आदि अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं।

अन्‍य दर्शनीय स्‍थल

वैसे तो महाबलीपुरम् शहर में ही कई प्राचीन एवं शार्मिक स्‍थल हैं जिनके दर्शन मात्र से ही मन प्रसन्‍न हो उठता है किंतु यदि आप तमिलनाडु में और पर्यटन स्‍थलों का भ्रमण करना चाहते हैं तो यहां आपके लिए अनेक विकल्‍प हैं जैसे, बृह्देश्‍वर मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, कपिलेश्‍वर मंदिर, रामनाथास्‍वामी मंदिर आदि।

कैसे पहुंचे

दक्षिण भारत के तमिलनाडु स्थित महाबलीपुरम् मंदिर पहुंचने के लिए चेन्‍नई अंतर्राष्‍ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम एयरपोर्ट है। नजदीकी चेंगलपट्टू जंक्‍शन रेलवे स्‍टेशन है। यहां से बस-टैक्‍सी सुविधा उपलब्‍ध रहती है।

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